यदि चन्दमा नहीं होता तो क्या होता?
वैज्ञानिक लेख
अवधेश पांडे, ग्वालियर
एक लंबे इतिहास में, चंद्रमा अंतरिक्ष में पृथ्वी का साथी रहा है। पृथ्वी व चंद्रमा दोनों ही ने अपने गुरुत्वाकर्षण बल के अदृश्य संबंध के माध्यम से एक दूसरे को आकार दिया। चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के वर्तमान दिन की लंबाई, मौसम और ज्वार भाटा के लिए ज़िम्मेदार है।
एक पल के लिए कल्पना करें कि मानलो चन्द्रमा नहीं होता तो क्या होता? पहला प्रभाव तो यह होता कि चांदनी रातें नहीं होती तथा रातें एकदम अंधेरी होतीं। चांद की शीतल चमक और सुंदरता पर फिल्मी गाने नहीं बनते, जैसे- ये चांद सा रोशन चेहरा, चौदहवीं का चांद हो, चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो आदि आदि। साथ ही पानी की सतह पर रुपहली झलमलाती चमक देखने को नहीं मिलती । समुद्र में ज्वार-भाटा न होने से समुद्र-यात्रा की परिस्थितियां बदल जातीं। यह भी तथ्य है कि अंधेरी रातें हमारे अंदर डर पैदा करती हैं अतः यदि चन्दमा नहीं होता तो पृथ्वी के वासिंदे बहुत चिड़चिड़े होते।
चंद्रमा मनुष्यों के लिए प्रेरणा और ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है, जो ब्रह्मांड विज्ञान, पौराणिक कथाओं, धर्म, कला, समय निर्धारण, प्रकृति विज्ञान और अंतरिक्ष उड़ान के लिए महत्वपूर्ण प्रेरक रहा है।
विज्ञान कहता है कि चांदनी रातें न होने के कारण अनेक खगोलिकीय प्रेक्षण सरल हो जाते। ऐसी परिस्थितियों में खगोल वैज्ञानिक सौरमंडल में और भी अधिक तारे धूमकेतु तथा नन्हें ग्रह ढूढ़ने में सफल होते। बहुत संभव है कि चांद के न रहने पर पृथ्वी की भौतिकीय प्रक्रियाओं के प्रवाह पर भी निश्चित प्रभाव पड़ता। पहली बात तो यह है कि पृथ्वी के गोल होने की बात चंद्रग्रहण के समय चांद पर पृथ्वी की गोल छाया द्वारा ही प्रमाणित हुई थी। साथ ही चंद्रमा के नहीं होने पर सूर्यग्रहण भी नहीं होता ।
इटली के वैज्ञानिक गैलीलियो द्वारा टेलीस्कोप से चन्द्रमा को देख कर ही उसकी सतह पर पर्वतों और गहरे गड्डों की उपस्थिति ज्ञात की। अगर चन्दमा नहीं होता तो गैलीलियो सबसे पहले पृथ्वी और आकाश के बीच खड़ी अभेद्य दीवार में पहली वास्तविक खिड़की नहीं खोल पाते। साथ ही महान वैज्ञानिक न्यूटन भी चन्द्रमा की गति के अध्ययन के आधार पर ही गुरुत्वाकर्षण नियम नहीं दे पाते। साथ ही पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा की गति के प्रेक्षण के आधार पर पृथ्वीवासी कृत्रिम उपग्रह बनाने की प्रेरणा भी नहीं प्राप्त कर सकते थे। साथ ही चंद्रमा के निर्माण में हुई विशाल टक्कर ने पृथ्वी को थोड़ा झुका दिया जिससे हमारे उत्तरी ध्रुव को "सीधे ऊपर" से 23.5 डिग्री झुकाने में योगदान दिया । इस घटना ने पृथ्वी को स्थायी मौसम की सौगात दी। चंद्रमा के बिना पृथ्वी पर वसंत, ग्रीष्म, पतझड़ और सर्दियों के कारण पृथ्वी की शानदार प्रगति नहीं होती।
चन्द्रमा की भूमिका वैज्ञानिक सिद्धांतों के विकास को प्रभावित करने तक ही सीमित नहीं है। पिछले समय से हमारे निकटतम आकाशीय पिंड के रूप में चांद एक तरह से परीक्षण-भूमि बन गया है, जहां अंतरिक्ष के अध्ययन और शोध से संबंधित अनेक जटिल कार्रवाइयों की जाँच की जाती है, उनका विकास किया जाता है। चंद्रमा अंतरिक्ष में पहला रेडियो "दर्पण" बना। अपोलो मिशन द्वारा चाँद पर छोड़े गए रेडियो दर्पणों द्वारा खगोलीय रेडियो लोकेशन के तरीकों को विकसित करने में काफी मदद की। चंद्रमा की सतह से परावर्तित रेडियो तरंगों के प्रयोगों को आधार बनाया गया सूर्य और सौर मंडल के कई ग्रहों का पता लगाने के लिए विशेष उपकरण डिजाइन किये गए।
अंतरिक्ष यात्रा के विकास में चंद्रमा बहुत अधिक उपयोगी है, केवल इसलिए नहीं कि यह एक स्टेशन है या इस पर स्टेशन स्थापित होने की संभावना है, बल्कि इसलिए भी कि अंतरिक्ष नेविगेशन में शामिल आवश्यक ऑपरेशन चंद्रमा के आसपास किये जा रहे हैं। जो अन्य ग्रहों की यात्रा में काम आएंगे।
चंद्रमा की अनुपस्थिति प्रवलन (Precession) नामक घटना के प्रभाव को बहुत कम कर देती। जैसा कि हम जानते हैं, पृथ्वी ध्रुवों पर थोड़ी चपटी है, इसकी ध्रुवीय त्रिज्या भूमध्य रेखा से लगभग 21 किलोमीटर छोटी है। यह पृथ्वी के पदार्थ के पुनर्वितरण का परिणाम है, जो इसके दैनिक घूर्णन के कारण होता है। पदार्थ का कुछ भाग ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर विस्थापित हो गया है, जिससे भूमध्यरेखीय उभार बन गया है। चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के साथ-साथ सूर्य और ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के कारण, पृथ्वी की घूर्णन धुरी लगभग 26 हजार वर्षों के भीतर एक शंकु का निर्माण करती है, जिसके शीर्ष पर लगभग 47 डिग्री का कोण होता है। इसे प्रवलन प्रभाव कहा जाता है। इसीलिये आज का ध्रुव तारा सदैव उत्तरी ध्रुब पर नहीं दीखता था और न ही भविष्य में दिखेगा। लगभग 13 हजार वर्ष बाद लायरा तारामंडल में वेगा तारे द्वारा ध्रुव तारे की भूमिका निभाई जाएगी।
हालाँकि सूर्य और ग्रहों के द्रव्यमान की तुलना में चंद्रमा का द्रव्यमान अधिक नहीं है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह हमारे सबसे करीब है। और गुरुत्वाकर्षण बल दूरी के वर्ग के समानुपाती होता है, दूसरे शब्दों में, यह दूरी के साथ कमजोर होता जाता है। यदि चंद्रमा नहीं होता, तो भी हमारे पास प्रवलन (Precession होता, केवल शंकु के शीर्ष पर कोण काफी छोटा होता।
चन्द्रमा की उपस्थिति ने पृथ्वी पर दिन की लंबाई को बहुत अधिक प्रभावित किया है। आरम्भ में पृथ्वी बहुत तेज़ गति से घूम रही थी, कंप्यूटर मॉडल के अनुसार, 4.5 बिलियन साल पहले पृथ्वी पर छह घंटे का दिन था! तब से, चंद्रमा की मदद से, पृथ्वी ने अपनी गति को धीमा किया है जिससे हमारे दिन लंबे होते जा रहे हैं। वैज्ञानिक साक्ष्य बतलाते हैं कि जीवाश्म कोरल और शैल में वृद्धि के छल्ले और प्राचीन प्रकाश संश्लेषक बैक्टीरिया परतें जिन्हें स्ट्रोमेटोलाइट्स कहा जाता है के अनुसार 850 मिलियन साल पहले एक दिन की लंबाई लगभग 21 घंटे थी। 400 मिलियन साल पहले 22 घंटे का दिन पृथ्वी पर होता था।
समय के साथ, पृथ्वी पर चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव ने पृथ्वी की कुछ घूर्णन ऊर्जा को "चुरा लिया", जिससे चंद्रमा धीरे-धीरे उच्चतर कक्षाओं में चला गया। अपोलो लेजर प्रयोगों ने पुष्टि की कि चंद्रमा प्रति वर्ष दो इंच (पांच सेंटीमीटर) की दर से दूर जा रहा है। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी बढ़ गई और दोनों के घूर्णन कम हो गए। आज, पृथ्वी हर 24 घंटे में एक बार घूमती है।
इसलिए, चंद्रमा आकाश में मात्र कवियों के अलंकरण का एक टुकड़ा नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण कारक है जिसके बिना वैज्ञानिक प्रगति और अंतरिक्ष अन्वेषण शायद बहुत धीमा होता।
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अवधेश पांडे
Science For Everyone
30 जून 2024
Good Scientiffic post
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