मेंडलीफ : वैज्ञानिक अनुभूति प्राप्त एक दार्शनिक रसायनज्ञ
जिस वर्ष भारत की भूमि पर गांधी जन्मे ठीक उसी वर्ष रूस में मेंडलीफ ने दुनिया के समक्ष अपना आवर्त नियम प्रस्तुत किया। उन्होंने उस समय तक ज्ञात 56 तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में रख पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया और कहा कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिक मेरे इस संकल्प पत्र को पूरा करें। खाका मैंने खींच दिया है इसे भरना मानवजाति के आगे बढ़ने के रूप में देखा जाएगा। आश्चर्य इस बात का है कि इन 56 तत्वों में एक की भी खोज रूस के किसी वैज्ञानिक ने नहीं की थी।
56 तत्वों को 8 खड़ी और छः आड़ी लकीरों में खींचना शुरू शुरू में वैज्ञानिक जगत में शंका से देखा गया लेकिन एक सिद्ध बाबा की तरह उन्होंने इसके विकास के चरण भी निर्धारित कर दिए और उन्होंने अपनी प्रयोगशाला की बड़ी टेबिल पर वही बैठे बैठे ऐसी भविष्यवाणी कर दीं कि हर नए तत्व के खोजकर्ता को ॐ मेंण्डलीफ़ाय नमः कहना ही पड़ा। उन्होंने ऐसी आश्चर्यजनक आवर्त पद्धति विकसित की जिसके फलस्वरूप अनेकों सुझावों और संशोधनों के बाद भी मेंडलीफ आवर्त सारिणी के अगुआ बने हुए हैं।
मेंडलीफ ऐसे कल्पनाशील वैज्ञानिक थे जिन्होंने वैज्ञानिकों की नई पीढ़ी को कल्पना के नए पंख लगा दिए। वे एक ऐसे दार्शनिक संत हुए जिन्होंने गौतम बुद्ध के विपरीत हर अव्याकृत प्रश्न (ऐसे प्रश्न जिनका जवाब नहीं दिया जाए)
का जवाब दिया, रामकृष्ण परमहंस की तरह आवर्त नियम को एक अनुभूति की तरह प्रस्तुत किया और गांधीजी की तरह विश्वव्यापी समावेशीकरण किया। वे रूस से बाहर बहुत कम निकले, वे न कहीं उपदेश देने गए और न उन्होंने बढ़ चढ़कर कोई दावे प्रस्तुत किये और अपनी प्रयोगशाला की टेबिल पर तत्वों को व्यवस्थित करते हुए एक ऐसी वैज्ञानिक अनुभूति प्राप्त की जिसके एक एक छोर पर हाइड्रोजन और दूसरे छोर पर अनगिनत संभावनाओं के अनेक तारामंडल हैं। उनके वक्तव्य विश्वभर के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में वेदवाक्यों की तरह ग्रहण किये गए।
एका बोरोन, एका एल्युमिनियम व एका सिलिकन की भविष्यवाणी करते हुए, 14 मार्च 1870 को मेंडलीफ ने रूसी वैज्ञानिकों की सभा को संबोधित करते हुए कहा- ‘’आवर्त नियम के बिना न तो हम अज्ञात तत्वों के गुणों का पूर्वानुमान कर सकते हैं और न ही उनमें कुछ अभाव या त्रुटि महसूस कर सकते हैं। नए तत्वों की खोज केवल संयोग, कुशाग्रता, दूरदर्शिता और गहरी समझ पर निर्भर करेगी। नए प्रयोग, कल्पना तथा उभरती हुई परिस्थितियों के प्रति जागरूकता वैज्ञानिक समाज की प्राणवायु है। मैंने अपार संभावनाओं का दरवाजा खोल दिया है और मेरे पास जो भी ज्ञान की अनुभूति थी उसे मैंने पूरी ईमानदारी से समूची मानवता के समक्ष उड़ेल दिया है। आने वाली पीढ़ियों के विश्वभर के मेरे अपने बच्चे नई खोजों द्वारा इसके खाली स्थानों को भरकर इस सारिणी की सार्थकता को अभिप्रमाणित कर मुझे सच्ची श्रद्धांजलि देंगे।‘’
मेंडलीफ के अद्भुत पूर्वानुमान वैज्ञानिकों के लिए एक अनसुलझी पहेली बने रहे। बहुत से लोगों को उनकी बात समझ नहीं आयी पर पूरी दुनिया मेंडलीफ के आव्हान पर जुट गई। पूरी दुनिया में तत्वों की खोज की होड़ चल पड़ी। तत्वों की खोज में कई तरह के दावे, प्रतिदावे, फर्जीवाड़े भी आये पर मेंडलीफ ने हंस की तरह मोती चुन लिए और बाकी चीजों को अस्वीकार कर दिया।
27 अगस्त 1875 को ठीक 3 बजकर 30 मिनिट पर मेंडलीफ की भविष्यवाणी और पूर्वानुमान को पहली बार दुनिया ने पूरा होते देखा। फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक 21 वर्ष के वैज्ञानिक डी बुआबोडरन फ्रेंच साइंस एकेडमी में वैज्ञानिक व विदेशी पत्रकारों से खचाखच भरे हाल में एक महत्वपूर्ण घोषणा करने जा रहे थे। वैज्ञानिक ने कहा-
‘’ मुझे आर्गले घाटी में मिले जिंक सल्फाइड में एक नए तत्व के स्पष्ट लक्षण दिखाई दिए हैं, जिसके स्पेक्ट्रोस्कोपिक विश्लेषण से प्राप्त नतीजे मेंडलीफ द्वारा दिये गए पूर्वानुमानों से एकदम मेल खाते हैं। मैंने मेंडलीफ महोदय को पूरा विवरण भेज दिया है।''
18 नवम्बर 1875 को मेंडलीफ ने रूसी भौतिकविदों की सोसाइटी के अधिवेशन में कहा कि नया तत्व मेरे द्वारा पूर्वानुमानित एका एल्युमिनियम है। मैंने फ्रांसीसी वैज्ञानिक को बधाई सहित नए तत्व का नाम फ्रांस की परंपरा के अनुकूल रखने का सुझाव दिया है।
नए तत्व का नाम फ्रांस की केमिकल सोसाइटी ने गेलियम रखा और बड़े सम्मान के साथ डी बुआबोडरन ने अपना फोटो मेंडलीफ को भेजते हुए लिखा-
With profound respect and an ardent wish to count Mendeleev among my friends. L. de Boibaudran.
मेंडलीफ ने फोटो पर लिखा ‘’ Lecoq de Boibudran. Peris discovered eka- alluminium in 1875 and named it ‘’ Gallium” Ga 69.7
मेंडलीफ के पूर्वानुमान पर दूसरी मुहर उस समय लगी जब स्वीडन के वैज्ञानिक नील्सन ने 12 मार्च 1879 को मेंडलीफ को पत्र लिखा-
‘’मुझे आपको इस बात की सूचना देते हुए बड़ा गर्व हो रहा है कि आपका सपना सच हो रहा है। आपका पूर्वानुमानित तत्व एका बोरान प्राप्त कर लिया गया है जिसका नाम ‘स्कैनडियम’ प्रस्तावित किया गया है। ‘’
मेंडलीफ ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि ‘’मुझे इस खोज से जो खुशी प्राप्त हुई है उसे शब्दों में बयान करना कठिन है।‘’
मेंडलीफ के आखिरी पूर्वानुमान पर मुहर उस दिन लगी जब 26 फरवरी 1885 को जर्मन वैज्ञानिक विंकेलर ने मेंड़लीफ को पत्र लिखकर सूचित किया-
‘’ मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि आरजीरोडाइट खनिज में मुझे एक नए तत्व का आभास हो रहा है जो एंटीमनी व बिस्मिथ के बीच स्थान पायेगा।‘’
मेंडलीफ ने तुरंत उत्तर दिया और कहा कि नया तत्व एका सिलिकन है जो टिन के ऊपर रिक्त स्थान में ही भरा जाएगा।
अवधेश पांडे
21 अप्रैल 2019
दुनिया में अनेक ऐसी खोजें और अनेक ऐसे वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने समूची मानवता को अचंभित कर दिया और भविष्य में धरती के गर्भ से ऐसी विभूतियां उत्पन्न होती रहेंगीं।
देश के गर्भ में जो अनुभूतियां संचित होती हैं उन्हीं को अभिव्यक्त करने के लिए वह दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और चिंतकों को अपनी कोख से उगलता है। ये साधक उस देशकाल की सीमा को लांघकर अखिल भूमण्डल में छा जाते हैं भले ही उनको कोई सम्पन्न वैज्ञानिक विरासत न मिली हो।जिस वर्ष भारत की भूमि पर गांधी जन्मे ठीक उसी वर्ष रूस में मेंडलीफ ने दुनिया के समक्ष अपना आवर्त नियम प्रस्तुत किया। उन्होंने उस समय तक ज्ञात 56 तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में रख पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया और कहा कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिक मेरे इस संकल्प पत्र को पूरा करें। खाका मैंने खींच दिया है इसे भरना मानवजाति के आगे बढ़ने के रूप में देखा जाएगा। आश्चर्य इस बात का है कि इन 56 तत्वों में एक की भी खोज रूस के किसी वैज्ञानिक ने नहीं की थी।
56 तत्वों को 8 खड़ी और छः आड़ी लकीरों में खींचना शुरू शुरू में वैज्ञानिक जगत में शंका से देखा गया लेकिन एक सिद्ध बाबा की तरह उन्होंने इसके विकास के चरण भी निर्धारित कर दिए और उन्होंने अपनी प्रयोगशाला की बड़ी टेबिल पर वही बैठे बैठे ऐसी भविष्यवाणी कर दीं कि हर नए तत्व के खोजकर्ता को ॐ मेंण्डलीफ़ाय नमः कहना ही पड़ा। उन्होंने ऐसी आश्चर्यजनक आवर्त पद्धति विकसित की जिसके फलस्वरूप अनेकों सुझावों और संशोधनों के बाद भी मेंडलीफ आवर्त सारिणी के अगुआ बने हुए हैं।
मेंडलीफ ऐसे कल्पनाशील वैज्ञानिक थे जिन्होंने वैज्ञानिकों की नई पीढ़ी को कल्पना के नए पंख लगा दिए। वे एक ऐसे दार्शनिक संत हुए जिन्होंने गौतम बुद्ध के विपरीत हर अव्याकृत प्रश्न (ऐसे प्रश्न जिनका जवाब नहीं दिया जाए)
का जवाब दिया, रामकृष्ण परमहंस की तरह आवर्त नियम को एक अनुभूति की तरह प्रस्तुत किया और गांधीजी की तरह विश्वव्यापी समावेशीकरण किया। वे रूस से बाहर बहुत कम निकले, वे न कहीं उपदेश देने गए और न उन्होंने बढ़ चढ़कर कोई दावे प्रस्तुत किये और अपनी प्रयोगशाला की टेबिल पर तत्वों को व्यवस्थित करते हुए एक ऐसी वैज्ञानिक अनुभूति प्राप्त की जिसके एक एक छोर पर हाइड्रोजन और दूसरे छोर पर अनगिनत संभावनाओं के अनेक तारामंडल हैं। उनके वक्तव्य विश्वभर के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में वेदवाक्यों की तरह ग्रहण किये गए।
एका बोरोन, एका एल्युमिनियम व एका सिलिकन की भविष्यवाणी करते हुए, 14 मार्च 1870 को मेंडलीफ ने रूसी वैज्ञानिकों की सभा को संबोधित करते हुए कहा- ‘’आवर्त नियम के बिना न तो हम अज्ञात तत्वों के गुणों का पूर्वानुमान कर सकते हैं और न ही उनमें कुछ अभाव या त्रुटि महसूस कर सकते हैं। नए तत्वों की खोज केवल संयोग, कुशाग्रता, दूरदर्शिता और गहरी समझ पर निर्भर करेगी। नए प्रयोग, कल्पना तथा उभरती हुई परिस्थितियों के प्रति जागरूकता वैज्ञानिक समाज की प्राणवायु है। मैंने अपार संभावनाओं का दरवाजा खोल दिया है और मेरे पास जो भी ज्ञान की अनुभूति थी उसे मैंने पूरी ईमानदारी से समूची मानवता के समक्ष उड़ेल दिया है। आने वाली पीढ़ियों के विश्वभर के मेरे अपने बच्चे नई खोजों द्वारा इसके खाली स्थानों को भरकर इस सारिणी की सार्थकता को अभिप्रमाणित कर मुझे सच्ची श्रद्धांजलि देंगे।‘’
मेंडलीफ के अद्भुत पूर्वानुमान वैज्ञानिकों के लिए एक अनसुलझी पहेली बने रहे। बहुत से लोगों को उनकी बात समझ नहीं आयी पर पूरी दुनिया मेंडलीफ के आव्हान पर जुट गई। पूरी दुनिया में तत्वों की खोज की होड़ चल पड़ी। तत्वों की खोज में कई तरह के दावे, प्रतिदावे, फर्जीवाड़े भी आये पर मेंडलीफ ने हंस की तरह मोती चुन लिए और बाकी चीजों को अस्वीकार कर दिया।
27 अगस्त 1875 को ठीक 3 बजकर 30 मिनिट पर मेंडलीफ की भविष्यवाणी और पूर्वानुमान को पहली बार दुनिया ने पूरा होते देखा। फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक 21 वर्ष के वैज्ञानिक डी बुआबोडरन फ्रेंच साइंस एकेडमी में वैज्ञानिक व विदेशी पत्रकारों से खचाखच भरे हाल में एक महत्वपूर्ण घोषणा करने जा रहे थे। वैज्ञानिक ने कहा-
‘’ मुझे आर्गले घाटी में मिले जिंक सल्फाइड में एक नए तत्व के स्पष्ट लक्षण दिखाई दिए हैं, जिसके स्पेक्ट्रोस्कोपिक विश्लेषण से प्राप्त नतीजे मेंडलीफ द्वारा दिये गए पूर्वानुमानों से एकदम मेल खाते हैं। मैंने मेंडलीफ महोदय को पूरा विवरण भेज दिया है।''
18 नवम्बर 1875 को मेंडलीफ ने रूसी भौतिकविदों की सोसाइटी के अधिवेशन में कहा कि नया तत्व मेरे द्वारा पूर्वानुमानित एका एल्युमिनियम है। मैंने फ्रांसीसी वैज्ञानिक को बधाई सहित नए तत्व का नाम फ्रांस की परंपरा के अनुकूल रखने का सुझाव दिया है।
नए तत्व का नाम फ्रांस की केमिकल सोसाइटी ने गेलियम रखा और बड़े सम्मान के साथ डी बुआबोडरन ने अपना फोटो मेंडलीफ को भेजते हुए लिखा-
With profound respect and an ardent wish to count Mendeleev among my friends. L. de Boibaudran.
मेंडलीफ ने फोटो पर लिखा ‘’ Lecoq de Boibudran. Peris discovered eka- alluminium in 1875 and named it ‘’ Gallium” Ga 69.7
मेंडलीफ के पूर्वानुमान पर दूसरी मुहर उस समय लगी जब स्वीडन के वैज्ञानिक नील्सन ने 12 मार्च 1879 को मेंडलीफ को पत्र लिखा-
‘’मुझे आपको इस बात की सूचना देते हुए बड़ा गर्व हो रहा है कि आपका सपना सच हो रहा है। आपका पूर्वानुमानित तत्व एका बोरान प्राप्त कर लिया गया है जिसका नाम ‘स्कैनडियम’ प्रस्तावित किया गया है। ‘’
मेंडलीफ ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि ‘’मुझे इस खोज से जो खुशी प्राप्त हुई है उसे शब्दों में बयान करना कठिन है।‘’
मेंडलीफ के आखिरी पूर्वानुमान पर मुहर उस दिन लगी जब 26 फरवरी 1885 को जर्मन वैज्ञानिक विंकेलर ने मेंड़लीफ को पत्र लिखकर सूचित किया-
‘’ मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि आरजीरोडाइट खनिज में मुझे एक नए तत्व का आभास हो रहा है जो एंटीमनी व बिस्मिथ के बीच स्थान पायेगा।‘’
मेंडलीफ ने तुरंत उत्तर दिया और कहा कि नया तत्व एका सिलिकन है जो टिन के ऊपर रिक्त स्थान में ही भरा जाएगा।
संशोधित मेंडलीफ की आवर्त सारिणी-
संशोधित आवर्त सारिणी वह सारिणी है जिसमें 9 उर्ध्वाधर खाने (वर्ग) तथा 7 क्षेतिज खाने(आवर्त) हैं। जिसको मेंडलीफ ने अपने जीवनकाल में शून्य समूह ( Zero Group) व दुर्लभ मृदा तत्वों (Rare Earth Element) को स्वेच्छा से अपनी सारिणी में समाहित कर लिया।
दरअसल हुआ यह कि अंग्रेज वैज्ञानिक विलियम रैम्जे व उनके सहयोगियों ने 1894 से 1900 के बीच चार निष्क्रिय गैसों आर्गन, नियॉन, क्रिप्टॉन व जिनान की खोज की।
जब 24 मई 1894 को रैम्जे व रेले ने मेंडलीफ को एक पत्र लिखा कि क्या आपने कभी सोचा है कि आवर्त सारिणी में निष्क्रिय गैसों के लिए भी स्थान होगा? और अगर होगा तो कहां?
मेंडलीफ ने 27 जुलाई 1894 को रैम्जे व रेले को पत्र का जवाब देते हुए लिखा-
‘’ कहा जाता है कि इतिहास की मजबूत बुनियाद भविष्यवाणी की अद्भुत शक्ति प्रदान करती है। मैं खुद मानसिक उहापोह में था कि ऋण विधुतीय सातवे वर्ग के हेलोजन के एकदम बाद धनविधुतीय प्रथम समूह की धातु के बीच कोई निष्क्रिय समूह होना चाहिए। आपने मेरे सपने को चरितार्थ किया। मैं आपकी कठिन मेहनत और जज्वे की सराहना करता हूँ।‘’
सातवे आवर्त के दुर्लभ मृदा तत्वों को अपनी सारिणी से नीचे अलग स्थान प्रदान करते हुए मेंडलीफ ने रूसी विज्ञान अकादमी में मौजूद विश्वभर के 1500 वैज्ञानिकों के समक्ष घोषणा की कि-
‘’आवर्त सारिणी के नीचे दुर्लभ मृदा तत्वों का यह स्थान भृमों का समुद्र निकलेगा और इसमें कई सत्य डूब जाएंगे।‘’
हुआ भी यही 1878 से लेकर 1910 तक 100 से ज्यादा दुर्लभ मृदा तत्वों के खोज की फर्जी खबरें आईं जिनमें केवल 10 ही सही निकलीं।
2 फरवरी 1907 को आवर्त वर्गीकरण के पुरोधा मेंडलीफ की सेंटपिट्सवर्ग में मृत्य हो गयी।
मेंडलीफ की मृत्यु के बाद 1913 में इलेक्ट्रोनिक आधार पर मोसले ने आधुनिक आवर्त नियम प्रस्तुत किया। आवर्त सारिणीं में 18 उर्ध्वाधर खाने और 7 क्षेतिज खाने बने पर मेंडलीफ की बुनियादी भावना जस की तस बनी रही। इसे आधुनिक आवर्त सारिणी कहते हैं।
मेंडलीफ की आत्मा को तब शांति और श्रद्धांजलि मिली जब उनकी मृत्यु के 33 वर्ष बाद अमेरिकी वैज्ञनिक ग्लेन सीवर्ग ने 1940 में एक साथ 10 ट्रांसयूरेनियम तत्वों की खोज कर दुनिया में सनसनी फैला दी। ग्लेन खुद अपनी खोज से परेशान और तत्वों को कहां और कैसे व्यवस्थित किया जाय इसको लेकर उहापोह में थे। एक रात उन्होंने सपने में मेंडलीफ को देखा जिसमें वे मेंडलीफ से कह रहे है कि आखिरकार कितने तत्वों को समाहित कर लेंगे?
मेंडलीफ ने उन्हें सपने में कहा कि मैं नहीं जानता पर आप जितना आप खोजते जाएंगे मेरी सारिणी में आपको जगह मिलती जाएगी।
सीवर्ग द्वारा खोजे गए 10 तत्वों में से एक तत्व मेंण्डलीविम (Md ) परमाणु क्रमांक 101 को मेंडलीफ के नाम पर समर्पित कर IUPAC ने उन्हें सादर श्रद्धांजलि दी।
संशोधित आवर्त सारिणी वह सारिणी है जिसमें 9 उर्ध्वाधर खाने (वर्ग) तथा 7 क्षेतिज खाने(आवर्त) हैं। जिसको मेंडलीफ ने अपने जीवनकाल में शून्य समूह ( Zero Group) व दुर्लभ मृदा तत्वों (Rare Earth Element) को स्वेच्छा से अपनी सारिणी में समाहित कर लिया।
दरअसल हुआ यह कि अंग्रेज वैज्ञानिक विलियम रैम्जे व उनके सहयोगियों ने 1894 से 1900 के बीच चार निष्क्रिय गैसों आर्गन, नियॉन, क्रिप्टॉन व जिनान की खोज की।
जब 24 मई 1894 को रैम्जे व रेले ने मेंडलीफ को एक पत्र लिखा कि क्या आपने कभी सोचा है कि आवर्त सारिणी में निष्क्रिय गैसों के लिए भी स्थान होगा? और अगर होगा तो कहां?
मेंडलीफ ने 27 जुलाई 1894 को रैम्जे व रेले को पत्र का जवाब देते हुए लिखा-
‘’ कहा जाता है कि इतिहास की मजबूत बुनियाद भविष्यवाणी की अद्भुत शक्ति प्रदान करती है। मैं खुद मानसिक उहापोह में था कि ऋण विधुतीय सातवे वर्ग के हेलोजन के एकदम बाद धनविधुतीय प्रथम समूह की धातु के बीच कोई निष्क्रिय समूह होना चाहिए। आपने मेरे सपने को चरितार्थ किया। मैं आपकी कठिन मेहनत और जज्वे की सराहना करता हूँ।‘’
सातवे आवर्त के दुर्लभ मृदा तत्वों को अपनी सारिणी से नीचे अलग स्थान प्रदान करते हुए मेंडलीफ ने रूसी विज्ञान अकादमी में मौजूद विश्वभर के 1500 वैज्ञानिकों के समक्ष घोषणा की कि-
‘’आवर्त सारिणी के नीचे दुर्लभ मृदा तत्वों का यह स्थान भृमों का समुद्र निकलेगा और इसमें कई सत्य डूब जाएंगे।‘’
हुआ भी यही 1878 से लेकर 1910 तक 100 से ज्यादा दुर्लभ मृदा तत्वों के खोज की फर्जी खबरें आईं जिनमें केवल 10 ही सही निकलीं।
2 फरवरी 1907 को आवर्त वर्गीकरण के पुरोधा मेंडलीफ की सेंटपिट्सवर्ग में मृत्य हो गयी।
मेंडलीफ की मृत्यु के बाद 1913 में इलेक्ट्रोनिक आधार पर मोसले ने आधुनिक आवर्त नियम प्रस्तुत किया। आवर्त सारिणीं में 18 उर्ध्वाधर खाने और 7 क्षेतिज खाने बने पर मेंडलीफ की बुनियादी भावना जस की तस बनी रही। इसे आधुनिक आवर्त सारिणी कहते हैं।
मेंडलीफ की आत्मा को तब शांति और श्रद्धांजलि मिली जब उनकी मृत्यु के 33 वर्ष बाद अमेरिकी वैज्ञनिक ग्लेन सीवर्ग ने 1940 में एक साथ 10 ट्रांसयूरेनियम तत्वों की खोज कर दुनिया में सनसनी फैला दी। ग्लेन खुद अपनी खोज से परेशान और तत्वों को कहां और कैसे व्यवस्थित किया जाय इसको लेकर उहापोह में थे। एक रात उन्होंने सपने में मेंडलीफ को देखा जिसमें वे मेंडलीफ से कह रहे है कि आखिरकार कितने तत्वों को समाहित कर लेंगे?
मेंडलीफ ने उन्हें सपने में कहा कि मैं नहीं जानता पर आप जितना आप खोजते जाएंगे मेरी सारिणी में आपको जगह मिलती जाएगी।
सीवर्ग द्वारा खोजे गए 10 तत्वों में से एक तत्व मेंण्डलीविम (Md ) परमाणु क्रमांक 101 को मेंडलीफ के नाम पर समर्पित कर IUPAC ने उन्हें सादर श्रद्धांजलि दी।
21 अप्रैल 2019
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