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दीपावली : अंदर की ज्योति जलाने का त्योहार



अवधेश कुमार पांडे
 व्याख्याता
यह प्रकाश पर्व है और इसी दिन लक्ष्मी जी की आराधना खुलकर की जाती है। बाकी दिन आदमी अपने आपको निस्वार्थ और परोपकार में लीन रहने का दिखावा करता है और अध्यात्मिक ज्ञान का भी प्रदर्शन करता है लक्ष्मी जी की आराधना और बाह्य प्रकाश में व्यस्त समाज में बहुत लोग ऐसे भी हैं जो अंधेरों में आज भी रहेंगे और उनके लिये दीपावली एक औपाचारिकता भर है।बेहतर हो हम उनके अंधेरे के लिए लड़ें |


 जिनके पास लक्ष्मी जी की कृपा है ऐसे बाह्य प्रकाश में लिप्त लोगों को आंतरिक प्रकाश की चिंता नहीं रहती जो कि एक अनिवार्य शर्त है जीवन प्रसन्नता से गुजारने की।भारत की सभ्यता कोई आजकल की सभ्यता नहीं, हजारों बर्ष पुरानी सभ्यता है |

भारतीय सभ्यता इसलिए महान नहीं कि यह सोने की चिड़िया कही जाती है या यहां दूध और घी की गंगा कभी बहती थीं आपितु यह देश ज्ञान के  क्षीर सागर व ज्ञान के वैभव के कारण विश्वगुरु रहा है |
 भारत में वैभव विलास के कई सूरज उगे और कई डूबे पर व्यक्ति जिसे खोज रहा है, जिस शांति को तलाश रहा है वह शान्ति रुपयों के हुड़डंग में नहीं अपितु व्यक्ति के शील में है|दीपक जलाने से बाहरी दुनिया रोशन हो सकती है पर अंतरात्मा नहीं रोशन हो सकती |


इसीलिए भारतीय सनातनी दर्शन कहता है कि वह ज्योति जलाओ जिसमें तेल नहीं डालना पड़ता |
संत यारी साहब गाते थे-

‘’ बिरहिनी मंदिर दियना बार |
बिन बाती बिन तेल जुगत सों
बिन दीपक उजियार |’’

अर्थात मंदिर तुम्हारी देह है तथा अंतरआत्मा ज्योति है |
कितने समय से हमने लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए दीपक जलाए तेल जल गया पर न तो लक्ष्मी मिली न मन की शांति | बाहर की दुनिया रोशनी की चकाचोंधी प्रतिस्पर्धा में तब्दील हो गई और अंदर की रोशनी बुझ गई |


अब वह समय कहां रहा जब सारे पर्व परंपरागत ढंग से मनाये जाते थे? आधुनिक तकनीकी ने नये साधन उपलब्ध करा दिये हैं। दिवाली पर्व से जुड़े भौतिक तत्वों के उपयोग में परंपरागत शैली अब नहीं रही। वैसे तो सारे पर्व ही बाजार से प्रभावित हो रहे हैं पर दिवाली तो शुद्ध रूप से धन के साथ जुड़ा है इसलिये आधुनिक बाजार को उसे अपहृत करने में देर नहीं लगी। अपने देश ही के नहीं बल्कि विदेशी बाजार को भी इससे लाभ हुआ है। सबसे अधिक चीनी बाजार को इसका लाभ मिला है। वहां के बने हुए सामान इस समय जितना बिकते हैं उतना शायद कभी नहीं उनका व्यापार होता। बधाई संदेशो के लिये टेलीफोन पर बतियाते यह एस.एम.एस. संदेश भेजे जायेंगे जिससे संबंद्ध कंपनियों को अच्छी कमाई होगी।इसके बावजूद दीपावली केवल भौतिकता का त्यौहार नहीं है। एक दिन के बाह्री प्रकाश से मन और विचारों में छाया हुआ अंधेरा दूर नहीं हो सकता। लक्ष्मी जी तो चंचला हैं चाहे जहां चली जाती हैं और निकल आती हैं। सरस्वती की पूर्ण कृपा होने पर लक्ष्मीजी की अल्प सुविधा से काम चल सकता है पर लक्ष्मी जी की अधिकता के बावजूद अगर सरस्वती की बिल्कुल नहीं या बहुत कम कृपा है तो आदमी जीवन में हमेशा ही सबकुछ होते हुए भी कष्ट सहता है। तेल या घी के दीपक जलाने से बाहरी अंधेरा दूर हो सकता है पर मन का अंधेरा केवल ज्ञान ही दूर करना संभव है। हमारे देश के पास धन अब प्रचुर मात्रा में है पर आप देख रहे हैं कि वह किसके पास जा रहा है? हमसे धन कमाने वाले हमें ही आंखें दिखा रहे हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि धन सभी कुछ नहीं होता बल्कि उसके साथ साहस, तर्कशक्ति और मानसिक दृढ़ता और देश के नागरिकों में आपसी विश्वास भी होना चाहिए। दीपावली के अवसर एक दूसरे को बधाईयां देते लोगों का यह समूह वास्तव में दृढ़ है या खीरे की तरह अंदर से दो फांक है? यह भी देखना चाहिये। अपने अहंकार में लगे लोग केवल इस अवसर पर अपने धन, बाहुबल, पद बल दिखाने में लग जाते हैं। आत्म प्रदर्शन के चलते कोई आत्म मंथन करना नहीं चाहता। नतीजा यह है कि अंदर अज्ञान का अंधेरा बढ़ता जाता है और उतना ही मन बाहर प्रकाश देखने के लिये आतुर होता है।


विलासता के वैभव में डूबा समाज इस अवसर पर अपने धन, बाहुबल, पद बल दिखाने में लग जाता है | आत्म प्रदर्शन के चलते कोई आत्म मंथन करना नहीं चाहता। नतीजा यह है कि अंदर अज्ञान का अंधेरा बढ़ता जाता है और उतना ही मन बाहर प्रकाश देखने के लिये आतुर होता है। यह आतुरता हमें धन लौलुप समुदाय का गुलाम बना रही है। स्वतंत्र विचार का सर्वथा अभाव इस देश में परिलक्षित है। बुद्धि सचमुच कहीं पलायन कर गई है | देश विकास कर रहा है पर फिर भी अशांति है। लोग यह समझ रहे हैं कि लक्ष्मी अपने घर में स्थाई है। समाज में गरीबों, मजबूरों और परिश्रमी समुदाय के प्रति उपेक्षा का भाव जिस विद्रोह की अग्नि को प्रज्जवलित कर रहा है उसे बाहरी प्रकाश में नहीं देखा जा सकता है। उसके लिये जरूरी है कि हमारे मन में कामनाओं के साथ ज्ञान का भी वास हो ताकि अपनी संवेदना से हम दूसरों का दर्द पढ़ सकें। मनुष्य यौनि का यह लाभ है कि उसमें अन्य जीवों से अधिक विचार करने की शक्ति है पर इसके साथ यह भी जिम्मेदारी है कि वह  प्रकृति और अन्य जीवों की स्थिति पर विचार करते हुए अपना जीवन गुजारे। अंतर्मुखी रहो पर आत्ममुग्ध नहीं | यह आत्म मुग्धता उसी अंधेरे में रहती है जो आदमी अपने अंदर पालता है। इस अंधेरे से लड़ने की ताकत आध्यात्मिक ज्ञान के दीपक में ही आती है और इसे इस अवसर पर जगाना होगा। दीपावली के इस महान पर्व पर अपने फेसबुक   मित्रों, परिजनों और तथा सभी देशवासियों को अपने तले अंधेरा रखने वाले  की तरफ से बधाई। सभी के उज्जवल भविष्य की कामना है। हमारे ऋषि मुनि कहते हैं कि जो सभी का सुख चाहते हैं वही सुखी रहते हैं। हमें उनके मार्ग पर चलने का इस अवसर पर संकल्प लेना चाहिए|

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम  ।।

आजाद भारत की पहली दिवाली पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का संदेश-


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह संदेश देश की आजादी के बाद पहली दीवाली के मौके पर आया था



आज दीवाली है और मैं आप सबको इस अवसर पर बधाई देता हूं. यह हिंदू पंचांग का एक असाधारण दिन है. विक्रम संवत के अनुसार कल यानी गुरूवार से नया साल शुरू हो जाएगा. हम सबको यह समझना जरूरी है कि क्यों हर साल हम दीवाली के पर्व पर रोशनी करते हैं. राम-रावण के बीच हुए महासंग्राम में राम और रावण अच्छी और बुरी शक्तियों के प्रतीक हैं. राम ने रावण पर विजय प्राप्त की और उनकी इस विजय ने भारत में रामराज्य स्थापित किया.

हम दीवाली कैसे मना सकते हैं? इस जीत का पर्व वही लोग मना सकते हैं जिनके हृदय में राम बसे हुए हैं. क्योंकि केवल ईश्वर ही है जो हमारी आत्मा को प्रकाशित कर सकता है और यह प्रकाश ही असली प्रकाश है. आज जो भजन गाया गया उसमें कवि ईश्वर के दर्शन करना चाहता है. लोगों की भीड़ कृत्रिम रोशनी देखने जाती है लेकिन, आज हमें अपने दिलों में प्रेम की रोशनी की जरूरत है. हमें अपने दिलों में प्रेम की लौ जलानी होगी. तभी हम बधाई के पात्र हो सकेंगे.

आज हजारों लोग भीषण मुसीबत में हैं. क्या आप, आप सभी अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि मुसीबत में बड़ा हर शख्स चाहे वह हिंदू हो, सिख या मुसलमान, आपका अपना भाई-बहन है? यही आपकी परीक्षा है. राम और रावण अच्छाई और बुराई के बीच चलने वाले सनातन संघर्ष के प्रतीक हैं. सच्चा प्रकाश भीतर से आता है. घायल कश्मीर को देखने के बाद  जवाहर लाल नेहरू कितने दुखी हृदय के साथ वापस लौटे हैं! वे कल और आज दोपहर वर्किंग कमिटी की बैठक में शामिल नहीं हो सके. वे बारामुला से मेरे लिए कुछ फूल लेकर आए थे. कुदरत के इन उपहारों को देखकर मैं हमेशा खुश होता हूं. लेकिन आज लूट, आगजनी और खूनखराबे ने उस जमीन की खूबसूरती को बर्बाद कर दिया है. जवाहरलाल जम्मू भी गए थे. वहां भी सब ठीक नहीं है.

सरदार पटेल को श्री शामलदास गांधी और डेराभाई के अनुरोध पर जूनागढ़ जाना पड़ा जिन्होंने उनसे सलाह मांगी थी. जिन्ना और भुट्टो, दोनों नाराज हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत सरकार ने उन्हें धोखा दिया है और वह जूनागढ़ पर संघ में शामिल होने के लिए दबाव बना रही है. यह हम सबका फर्ज है कि हम देश में शांति और भाईचारा स्थापित करने के लिए उनके दिलों से नफरत और शक दूर करें. अगर आप अपने भीतर ईश्वर की मौजूदगी महसूस नहीं करेंगे और अपने भीतर के छोटे-मोटे झगड़ों भुलाएंगे नहीं तो कश्मीर और जूनागढ़ में मिली सफलता व्यर्थ साबित होगी.

मैं आपसे वहीं कहूंगा जो मैं कल कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में कहने वाला हूं. गुरूवार से शुरू होने वाले नववर्ष में आप और सारा भारत प्रसन्न रहे. ईश्वर आपके हृदय को प्रकाशित करे ताकि आप न सिर्फ एक-दूसरे या भारत की बल्कि पूरे विश्व की सेवा कर सकें.
मोहनदास करमचन्द गांधी




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