ढोंगी बाबाओं में ऐसा क्या है जो लोगों को दीवाना बना लेता है ?
ढोंगी बाबाओं के नाम पर ये उग्र उन्मादी भीड़ जो अपने कथित भगवान के लिए जान देने और जान लेने को उतारू है ये लोग हैं ?
कौन होते हैं आसाराम बापू के लिए बेसुध होकर रोने वाले लोग ? राम रहीम के लिए कुछ भी फूंकने वाले ? राधे मां का फाइव स्टार आशीर्वाद लेने वाले?. राम पाल के लिए अपनी जान तक दे देने वाले. निर्मल बाबा की हरी चटनी खाकर अरबपति बन जाने वाले लोग ?
स्पष्ट तौर पर, गुरुओं और धार्मिक समूहों का उत्थान ये बताता है कि भारत अंदरूनी रूप से कितना ज़्यादा बंटा हुआ और बीमार मनोविज्ञान वाला देश है.
जिसे स्वयँ की तलाश होती है उसे भीड़ की जरूरत नहीं उसे तो एकांत की जरूरत होती है..विद्या समुद्र की सतह पर उठती हुई तरंग का नाम है किन्तु वैज्ञानिक और सुलझा हुआ दृष्टिकोण समुद्र की अंतरात्मा में बसता है जो कहीं अधिक मूल्यवान है | जब व्यक्ति को वैज्ञानिकता युक्त अनुभूति प्राप्त हो जाती है ज्ञान का द्वार उसके सामने स्वतः खुलने लगता है तथा सारी विद्याएं उसे स्वयं ही प्राप्त हो जाती हैं |
वो किसी रामपाल या आसाराम के पास नहीं, किसी राम कृष्ण परमहंस के पास जाता है.. वो किसी राम रहीम के पास नहीं.. रामानन्द के पास जाता है.. उसे पैसा, पद और अहंकार के साथ अधिभौतिकता की जरूरत नहीं. उसे तर्कपूर्ण और सच्चे ज्ञान की जरुरत होती है.
लेकिन बड़ी बात कि आज ज्ञान की जरूरत किसे हैं.. ? चेतना के विकास के लिए कौन योग दर्शन पढ़ना चाहता है.. कृष्णमूर्ति जैसे शुद्ध वेदांत के ज्ञाता के पास महज कुछ ही लोग जाते थे.. ऐसे न जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं और कितने सिद्ध महात्माओं को तो हम जानते तक नहीं… यहाँ जो चेतना को परिष्कृत करने ध्यान करने और साधना करने की बातें करता है उसके यहां भीड़ कम होती है और जो नौकरी देने, सन्तान सुख देने और अमीर बनाने के सपने दिखाता है उसके यहाँ लोग टूट पड़ते हैं.. वहीं सत्य साईं बाबा के यहाँ नेताओं एयर अफसरों की लाइन लगी रहती थी, क्योंकि वो हवा से घड़ी, सोने की चैन, सोने शिवलिंग प्रगट कर देते थे, राख और शहद बांट रहे थे.
क्या ताज्जुब है कि जिस साईं बाबा ने अपना पूरा जीवन फकीरी में बिता दिया. उनकी मूर्तियों में सोने और हीरे जड़ें हैं.. जिस बुद्ध ने धार्मिक आडम्बरो को बड़ा झटका दिया,मूर्तिपूजा का विरोध किया, संसार मे उन्हीं की सबसे ज्यादा मूर्तियां हैं.
गुरमीत राम रहीम सिंह को सजा सुनाए जाने पर उनके अनुयायियों ने हंगामा कर दिया. हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ हुई. इतना ही नहीं, कई लोगों की जानें भी गईं. इेरा प्रमुख के समर्थक ये बात मानने को तैयार ही नहीं हैं कि उनके बाबा को अदालत ने बलात्कार के लिए दोषी क़रार दिया.
यह दीवानगी अकेले गुरमीत राम रहीम के लिए नहीं है. आसाराम के अनुयायी हर हफ़्ते बापूजी निद्रोष हैं जैसे हैश टैग चलाकर उन्हें रिहा किए जाने की मांग करते रहते हैं.उनके गॉल ब्लैडर में यह बात धंस चुकी है कि सोनिया गांधी ने हमारे निर्दोष बाबा पर ऐसी धाराएं लगा दीं हैं कि वे जेल से नहीं निकल पा रहे हैं |
कुछ यही हाल रामपाल, राधे मां और ऐसे तमाम तथाकथित धर्मगुरुओं के समर्थकों का है. आख़िर क्या है इस दीवानगी की वजह? भारतीय समाज में लोग ऐसे बाबाओं पर इतना भरोसा क्यों करते हैं?
इसके पीछे के मनोवैज्ञानिक कारण को कुछ इस तरह समझ सकते हैं किअभावों में जीते लोगों के लिए भगवान जैसा कॉन्सेप्ट अंतिम सहारा जैसा होता है. चूँकि ये ढोंगी संत भक्तों का इतना ब्रेनवाश कर देते हैं कि वो इनको ही भगवान या भगवान तक डायरेक्ट पहुँच रखने वाला मान लेते हैं! धार्मिक व्यक्ति के लिए भगवान सवालों से, संदेह से, ग़लती से परे होता है इसलिए भक्त इन स्वघोषित गॉडमैन को स्वाभाविक रूप से ग़लतियों और संदेहों से परे मानते हैं.
कुछ लोगों का मानना है कि "शिक्षा" अगर रोग का निदान होता तो पढ़ा लिखा और टेक्नोक्रेट उतना बड़ा बेईमान और दोगला, आत्म संकोची और डरपोक नहीं होता जितना वह है।
मेरा मानना है शिक्षा इस रोग का निदान है ।लेकिन कैसी शिक्षा ?वर्तमान शिक्षा दोषपूर्ण है ।वह व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं करती है ।स्कूल शिक्षा व्यक्ति को जानकारी देती है और उच्च शिक्षा व्यक्ति को धन अर्जित करने का प्रशिक्षण देती है ।और शिक्षक होने के नाते मुझे जो सबसे बड़ी कमी नजर आई वह यह कि हमारी शिक्षण संस्थाओं की चारदीवारी में भी पाखंड ,अंधविश्वास ,धार्मिक कार्य , पूजा पाठ ,अवैज्ञानिक और अतार्किक गतिविधियां नियमित रूप से संचालित होती रहती हैं ।हमारी शिक्षण व्यवस्था खराब होने के कारण विद्यार्थी पर शिक्षा का प्रभाव कम पड़ता है लेकिन इन अतार्किक धार्मिक गतिविधियों का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है ।अतः वह शिक्षण संस्थाओं में जाकर भी प्रगतिशील तार्किक और वैज्ञानिक सोच वाला नहीं बन पाता है ।
धर्म के नाम पर व्यक्ति कुछ भी झूठ बोल सकता है ,चालाकी कर सकता है धोखा और ठगी कर सकता है लेकिन प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करता ।
आखिर क्यों धर्म और धार्मिक लोगों को कानून और संविधान से ऊपर समझा जाता है ।यदि प्रारंभ में ही इन पर कार्रवाई हो जाए तो यह पनप ही नहीं पाएंगे और दूसरी बात की यह लोगों को ठगने की हिम्मत ही नहीं कर पाएंगे ।लेकिन धर्म का नाम आते ही राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी और सामान्यजन इन पर कारवाई करने से डरता है।
अतः इस समस्या का एक ही समाधान है कि धर्म को व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला समझा जाए और सार्वजनिक जीवन से अलग ही कर दिया जाए ।किसी भी व्यक्ति को धर्म के नाम पर सार्वजनिक व्यवस्था में दखल देने की छूट ने दी जाए।
कट्टर धार्मिक परिवेश के कारण लोग सोच ही नही पाते हैं कि क्या सही है और क्या ग़लत. ऐसे लोग अंधभक्त बन जाते हैं, जिसका पूरा फ़ायदा नेता और बाबा उठाते हैं. ये कोई दीवानगी नहीं है. असल में चंद लोग भोले-भाले लोगों को ये कुटिल बाबा अपने मतलब के लिए लालच देकर फंसा देते हैं, उनकी दुखती रग़ पकड़ लेते हैं और फिर इनकी बात मानना लोगों की मजबूरी बन जाती है. जरूरत से ज्यादा पाखंड और अंधविश्वास की वजह से ऐसा होता है.
लेकिन अंधभक्ति में डूबी हमारी जनता उनसे ये नहीं पूछती कि स्वयम को योगी या त्यागी कहने वाले धर्मगुरु क्यों और कैसे करोड़ो की गाड़ियों में घुमते हैं, आलीशान घरों में रहते हैं? ये बाज़ार के मोहरे हैं जो उसके इशारे पर धर्म और आस्था के नाम पर जनता को ठगते हैं|
दरअसल ये सब अन्धविश्वास एक दिन में पैदा नहीं होता, ये पूरा एक चक्र है.. जरा ध्यान से टीवी देखिये, रेडियो
सुनिये, तो हम क्या देख रहें हैं..क्या सुन रहें हैं..अन्धविश्वास ही तो देख रहें हैं.. वही तो सुन रहे हैं…
पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों में भगवान को लेकर डर फैलाया गया है जिसकी वजह से भारतीय लोग जल्दी भावुक हो जाते हैं और महिलाएं इसकी ज़्यादा शिकार होती हैं. सरकार से बंधी उम्मीदें पूरी ना होने पर बेरोजगारी और पारिवारिक परेशानियां लोगों को बाबा के पास ले जाती हैं.
अब बहुत हो चुका अब इन सब बेवकूफियों पर रोक लगनी चाहिए या नहीं.. तभी हम चाहें कोई आर्थिक बाजार हो या धार्मिक बाजार इससे बच सकतें हैं.. ये धार्मिक गुरु जो होतें हैं.. ये काउंसलर होते हैं. ये धार्मिक एडवारटाइजमेंट करते हैं।..जहां आदमी का विवेक शून्य हो जाता है..और आप वही करने लगतें हैं जो आपके अवचेतन में भर दिया जाता है..
आज जरुरत है जागरूकता की.. विवेक पैदा करने की. जरा तार्किक बनने की और उससे भी ज्यादा ज्ञान की तलाश में भटकते रहने की.. वरना हम यूँ ही भटकते रहेंगे…
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