यदि चन्दमा नहीं होता तो क्या होता? वैज्ञानिक लेख अवधेश पांडे, ग्वालियर एक लंबे इतिहास में, चंद्रमा अंतरिक्ष में पृथ्वी का साथी रहा है। पृथ्वी व चंद्रमा दोनों ही ने अपने गुरुत्वाकर्षण बल के अदृश्य संबंध के माध्यम से एक दूसरे को आकार दिया। चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के वर्तमान दिन की लंबाई, मौसम और ज्वार भाटा के लिए ज़िम्मेदार है। एक पल के लिए कल्पना करें कि मानलो चन्द्रमा नहीं होता तो क्या होता? पहला प्रभाव तो यह होता कि चांदनी रातें नहीं होती तथा रातें एकदम अंधेरी होतीं। चांद की शीतल चमक और सुंदरता पर फिल्मी गाने नहीं बनते, जैसे- ये चांद सा रोशन चेहरा, चौदहवीं का चांद हो, चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो आदि आदि। साथ ही पानी की सतह पर रुपहली झलमलाती चमक देखने को नहीं मिलती । समुद्र में ज्वार-भाटा न होने से समुद्र-यात्रा की परिस्थितियां बदल जातीं। यह भी तथ्य है कि अंधेरी रातें हमारे अंदर डर पैदा करती हैं अतः यदि चन्दमा नहीं होता तो पृथ्वी के वासिंदे बहुत चिड़चिड़े होते। चंद्रमा मनुष्यों के लिए प्रेरणा और ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है, जो ब्रह्मांड विज्ञान, पौर...
अफवाहों से गांधीजी को बचाना अब हमारी जिम्मेदारी : अवधेश पांडे महात्मा गांधी होना आज की सबसे बड़ी जरूरत है, इसलिए नहीं कि गांधी की 150 वीं सालगिरह है। बल्कि इसलिए कि आज के इस अनुदार और अशांति के दौर में हमें पहले से कहीं ज्यादा जरूरत आज गांधीजी की है। क्योंकि जिस वक्त में दमन बहुत ज्यादा होता है उस वक्त में ही सबसे ज्यादा उदारता की बातें होती हैं। इस धोखाधड़ी को पहचानना सबसे कठिन काम होता है। दिखावटी उदारता में छिपे धोखे को पहचानना एक तरह से अपने समय के सत्य को पहचानना है। गांधीजी ने अपने समय के सत्य को पहचाना था और उसे बोलने की हिम्मत जुटाई थी। इसलिए आज हमें एक बार फिर उनके विचारों, उनकी सक्रियता, उनके साहस और उनके सिद्धांतों की सबसे अधिक आवश्यकता है। इतिहास व्यक्तियों को नहीं उनके व्यक्तित्व की परछाई को नापता है। कोई भी व्यक्ति इतिहास के कितने लंबे कालखंड पर प्रभाव डालता है इतिहास उसे तौलता है। गांधीजी पर बात करने का सबसे बड़ा खतरा यह हैं कि या तो हम उनमें ईश्वरीय गुणों का समावेश कर देते हैं या उन्हें एक जादूगर की तरह प्रस्तुत...