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Showing posts from February, 2018

भारतीय सौंदर्यभाव को वेलेंटाइन डे से डर क्यों?

भारतीय सौन्दर्यभाव  को वैलेंटाइन डे से डर क्यों? आज वैलेंटाइन डे है। इस पर वाद-विवाद करना मेरा ध्येय नहीं औऱ न इसके औचित्य को सही या गलत ठहराने की मंशा है। इस दिन को लेकर भारतीय समाज दो भागों में बंटा हुआ दिखता है। कुछ संगठन संस्कृति के ठेकेदार बनकर इसे 'भारतीय संस्कृति' पर हमला बताते हैं तो कुछ युवा पीढ़ी के लोग इसे एक स्वाभाविक आकर्षण का मानते हैं। क्या इस प्रकार के उत्सव भारतीय संस्कृति पर हमला है? क्या युवा सौंदर्यबोध के प्रति भारतीय समाज कभी इतना असहज रहा है?  उत्तर अगर हां है तो इसकी पड़ताल होनी चाहिए और नहीं है तो इतना बबेला क्यों? वैलेंटाइन डे से भारतीय समाज की घबराहट क्या ऐसे उत्सवों के प्रति हमारी अनुदारता प्रदर्शित करती है या इसके मूल में किसी संगठन की कोई कुंठा है। प्राचीन भारतीय साहित्य इस बात का गवाह है कि हमारा देश कभी 'बंद' समाज नहीं रहा है और अलग अलग प्राचीन इतिहास के साहित्य में युवा-युवतियों को खुलकर मिलने जुलने और प्रेम अभिव्यक्ति करने के कई प्रसंग दिखते हैं। प्राचीन भारत में ऐसा कोई उपलब्ध सामाजिक-सांस्कृतिक फॉर्मेट नहीं था जिसे पूरे समाज ने...