आख़िर ब्रिटेन के ब्रिस्टल में क्यों है राजा राममोहन राय की कब्र? आज से दो सौ साल पहले भारत एक दोराहे पर खड़ा था. एक तरफ़ अंग्रेज़ देश को ग़ुलामी में जकड़ रहे थे, दूसरी तरफ़ कुरीतियाँ समाज को पीछे ले जा रही थीं. राजा राममोहनराय ने हिंदुत्व, इस्लाम और ईसाईयत, तीनों धर्मों का गहन अध्ययन किया था और तीनों धर्मों पर वे सामान अधिकार के साथ बोल सकते थे। हिंदुत्व की पवित्रता, इस्लाम की रूचि और विश्वास तथा ईसाइयत की सफाई उन्हें बेहद पसंद थी। उनका वैयक्तिक रहनसहन मुसलामानों जैसा था, और एकेश्वरवाद में अटल विश्वास तथा मूर्तिपूजा का विरोध ये दो बातें उन्होंने इस्लाम से ली थीं। ईसाईधर्म से उन्होंने कुछ नहीं लिया ।जो कुछ लिया वह ईसाई देशो के सामाजिक जीवन, राजनैतिक संग़ठन और विज्ञान से । ऐसे समय में कुछ लोगों ने सोते समाज को जगाने का बीड़ा उठाया. उनमें पहली क़तार में थे राजा राममोहन राय. राजा राममोहन राय मूर्तिपूजा और रूढ़िवादी हिन्दू परंपराओं के विरुद्ध थे. वे अंधविश्वास के खिलाफ थे. उन्होंने उस समय समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई. सती प्...