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Showing posts from September, 2017

आखिर ब्रिटेन में क्यों है राजा राममोहन राय की कब्र

आख़िर ब्रिटेन के ब्रिस्टल में क्यों है राजा राममोहन राय की कब्र? आज से दो सौ साल पहले भारत एक दोराहे पर खड़ा था. एक तरफ़ अंग्रेज़ देश को ग़ुलामी में जकड़ रहे थे, दूसरी तरफ़ कुरीतियाँ समाज को पीछे ले जा रही थीं. राजा राममोहनराय ने हिंदुत्व, इस्लाम और ईसाईयत, तीनों धर्मों का गहन अध्ययन किया था और तीनों धर्मों पर वे सामान अधिकार के साथ बोल सकते थे। हिंदुत्व की पवित्रता, इस्लाम की रूचि और विश्वास तथा ईसाइयत की सफाई उन्हें बेहद पसंद थी। उनका वैयक्तिक रहनसहन मुसलामानों जैसा था, और एकेश्वरवाद में अटल विश्वास तथा मूर्तिपूजा का विरोध ये दो बातें उन्होंने इस्लाम से ली थीं। ईसाईधर्म से उन्होंने कुछ नहीं लिया ।जो कुछ लिया वह ईसाई देशो के सामाजिक जीवन, राजनैतिक संग़ठन और विज्ञान से । ऐसे समय में कुछ लोगों ने सोते समाज को जगाने का बीड़ा उठाया. उनमें पहली क़तार में थे राजा राममोहन राय. राजा राममोहन राय मूर्तिपूजा और रूढ़िवादी हिन्दू परंपराओं के विरुद्ध थे. वे अंधविश्वास के खिलाफ थे. उन्होंने उस समय समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई. सती प्...

भारतीय समाज और शिक्षण की चुनौतियां

भारत में संस्कृति का एक सूत्र वाक्य प्रचलित है ‘’तमसो मा ज्योतिर्गमय’’ इसका अर्थ है अँधेरे से उजाले की ओर जाना। इस प्रक्रिया को सही अर्थों में पूर्ण करने के लिए शिक्षा, शिक्षक और समाज तीनों की बड़ी भूमिका है। भारत प्राचीनकाल से ही शिक्षा और संस्कृति के मामले में बहुत समृद्ध रहा है। भारतीय समाज में जहाँ शिक्षा को  समग्र विकास का साधन माना गया है, वहीं शिक्षक को समाज के समग्र व्यक्तित्व के विकास का अगुआ माना गया है। भारत के महान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब सन् 1962 में देश के राष्ट्रपति के रूप में पदासीन हुए तो उनके चाहने वालों ने उनके जन्मदिन को “शिक्षक दिवस” के रूप में मनाने की अपनी इच्छा उनके समक्ष प्रकट की। इस पर उन्होंने स्वयं को  गौरवान्वित अनुभव करते हुए अपनी अनुमति प्रदान की और तब से लेकर आज तक प्रत्येक 5 सितम्बर को “शिक्षक दिवस” के रूप में उनका जन्मदिन मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन ने शिक्षा को एक मिशन के रुप में देखा और उनके अनुसार शिक्षक होने का अधिकारी वही व्यक्ति है, जो अन्य जनों से अधिक बुद्धिमान, सजग, व विनम्र हो। उनका कहना था कि उत्तम अध्यापन...